अदालती फैसले के चलते नवाज शरीफ के सत्ता से बाहर होने के बाद पाकिस्तानी सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा अचानक भारत को लेकर दिए अपने बयानों के कारण सुर्खियों में हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि माना जाता रहा है कि नवाज शरीफ, भारत के साथ संबंध सुधारने के इच्छुक थे लेकिन अपनी सेना के कारण वह ऐसा नहीं कर सके. यह भी कहा जाता है कि भारत के साथ दोस्ती की चाह के कारण ही उनको सत्ता से बेदखल होना पड़ा. लेकिन अब स्थान की पूर्ति के लिए पाकिस्तान की सबसे ताकतवर शख्सियत के रूप में जनरल कमर जावेद बाजवा सामने आए हैं.
बाजवा सिद्धांत
जनरल बाजवा ने पिछले दिनों कहा कि भारत-पाक के बीच कश्मीर समेत सभी विवादों का हल विस्तृत रूप से सार्थक बातचीत से ही निकल सकता है. उन्होंने ये भी कहा है कि मोदी सरकार अपने सख्त रुख के कारण पाकिस्तान के साथ अभी बातचीत नहीं कर रही है लेकिन अपनी तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण उसको अगले दो-तीन साल के भीतर पाकिस्तान के साथ बातचीत करने की दरकार होगी. इसके साथ ही यह भी उन्होंने हाल में कहा है कि पाकिस्तान को ऐसे शांतिप्रेमी देश के रूप में स्थापित करने का सपना देखते हैं जो दुनिया के साथ शांतिपूर्ण और सह-अस्तित्व की भावना के साथ रहना चाहता है. इन सारे बयानों को यदि एक साथ जोड़कर देखा जाए तो इसको पाकिस्तानी विदेश नीति के संदर्भ में बाजवा डॉक्ट्रिन(सिद्धांत) कहा जा रहा है. अब बड़ा सवाल उठता है कि आखिर जनरल बाजवा इस तरह के बयान क्यों दे रहे हैं?
बयान का मतलब
इसका जवाब लंदन के किंग्स कॉलेज में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने दैनिक भास्कर में लिखे अपने लेख में देते हुए कहा है कि दरअसल जनरल बाजवा यह संकेत दे रहे हैं कि नवाज शरीफ के सीन से हटने के बाद अब पाकिस्तानी फौज का पूरी तरह से नियंत्रण है. यानी कि पाकिस्तान के साथ होने वाली किसी भी प्रकार की बातचीत में सेना की भूमिका को नजरअंदाज करना असंभव है. हालांकि वह यह भी कहते हैं कि पाकिस्तान में इसी जुलाई-अगस्त में आम चुनाव होने वाले हैं और अगले एक साल के भीतर भारत में चुनाव होने वाले हैं. लिहाजा दोनों देशों के बीच रिश्तों में जमी बर्फ फिलहाल पिघलने वाली नहीं है.
‘ट्रैक 2’ की कूटनीति प्रक्रिया बहाल
हालांकि पाकिस्तानी संगठनों द्वारा भारत में बड़ी संख्या में आतंकी हमलों के बाद दोनों देशों के रिश्तों में आए ठहराव के बीच भारतीय विशेषज्ञों के एक समूह ने द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं पर चर्चा करने और 'ट्रैक 2' की कूटनीति प्रक्रिया को बहाल करने के लिए पाकिस्तान का दौरा किया. कूटनीतिक सूत्रों के मुताबिक मूल ट्रैक 2 पहल ‘नीमराणा संवाद’ को इस दौरे के साथ नई शुरुआत मिली. भारतीय पक्ष की अगुवाई पूर्व विदेश सचिव विवेक काटजू एवं अन्य विशेषज्ञों ने की, जबकि पाकिस्तानी पक्ष में पूर्व मंत्री जावेद जब्बार एवं अन्य शामिल थे. सूत्रों ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच इस्लामाबाद में 28 से 30 अप्रैल के बीच संवाद हुआ.
एक सूत्र के मुताबिक, ''दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं पर चर्चा की और इस बात पर सहमति जताई कि दोनों देशों के बीच सभी मुद्दे बातचीत के जरिये सुलझाये जाने चाहिए.'' सूत्रों ने बैठक में चर्चा के विषयों के बारे में और जानकारी देते हुए बताया कि दोनों पक्षों ने कश्मीर, सियाचिन, सर क्रीक, आतंकवाद, नियंत्रण रेखा पर तनाव तथा अफगानिस्तान सहित क्षेत्रीय स्थिति पर चर्चा की.
सूत्रों ने कहा कि दोनों पक्ष अपने प्रस्ताव विचार के लिए अपनी सरकारों को सौंपेंगे. पाकिस्तानी पक्ष में शामिल विशेषज्ञों में स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के पूर्व गवर्नर इशरत हुसैन भी थे जिनका नाम जुलाई में संभावित आम चुनाव के दौरान पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री के उम्मीदवारों के तौर पर मीडिया में चल रहा है. ट्रैक 2 की वार्ता को पूरी तरह गुप्त रखा गया और आयोजकों ने इस बारे में आधिकारिक रूप से कुछ भी साझा नहीं किया. 1990 के दशक की शुरुआत में नीमराणा संवाद की शुरुआत हुई थी.
साल 2016 में पाकिस्तान के संगठनों द्वारा किये गये आतंकी हमलों और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भारत के लक्षित हमलों के बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव पैदा हो गया था. दोनों पक्ष अक्सर एक दूसरे पर नियंत्रण रेखा पर संघर्षविराम उल्लंघन का आरोप लगाते हैं. हाल ही में भारत ने कहा था कि वह शंघाई सहयोग संगठन की रूपरेखा के तहत रूस में कई देशों के आतंकवाद निरोधक अभ्यास में पाकिस्तान के साथ भाग लेगा.
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